Shri Krishna Kanhaiya Bhagavad Gita
Bhagavad Gita has been the best self realization book of spiritual knowledge in all corners of the world. This is the best book to reveal the real truth of humanity in this earth. Bhagwat Geeta spoken by Krishna is such a vedic book, this paper any person can become great, no matter what caste religion, no matter what place that person is from, he can understand by reading this book and live his life. Best can make this book transmits the messages of Lord Shri Krishna to every human being so that every human can make his life happy, can make his life successful, can bring sanskars in his life and surely this book will show the direction of human life. is a book
भगवद गीता दुनिया के सभी कोनों में आध्यात्मिक ज्ञान की सबसे अच्छी किताब रही है। इस धरती पर मानवता के वास्तविक सत्य को प्रकट करने के लिए यह सबसे अच्छी किताब है। कृष्ण के द्वारा बोली गई भागवत गीता एक ऐसा वैदिक ग्रंथ है यह पेपर का कोई भी व्यक्ति महान बन सकता है चाहे वह किसी भी जाति धर्म का हो चाहे वह व्यक्ति किसी भी स्थान का हो वह इस पुस्तक को पढ़कर समझ सकता है और अपने जीवन को सर्वश्रेष्ठ बना सकता है यह पुस्तक भगवान श्री कृष्ण के संदेशों को प्रत्येक मनुष्य तक पहुंचाती है जिससे कि प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को खुशहाल बना सके अपने जीवन को सफल बना सके अपने जीवन में संस्कार ला सके और निश्चित ही यह पुस्तक मनुष्य के जीवन को दिशा दिखाने वाली पुस्तक है
Sri Krishna Kanhaiya Bhagavad Gita
We all know that the Bhagavad Gita has been widely published and read, but mainly it has been received in the form of an epithet of the Sanskrit epic Mahabharata. About 5000 years ago from today, Lord Shri Krishna had preached the Bhagavad Gita to his friend and devotee Arjuna, their conversation which is one of the greatest philosophical and religious conversations in human history took place before the start of the Mahabharata war that took place between Dhritarashtra. Dhatri was a deadly conflict between the hundred sons and their cousin Pandya Pandu sons. Dhritarashtra Pandu was brother-in-law who was born in the Kuru dynasty and they were the descendants of King Bharata, after whom the Mahabharata was named because the elder brother Dhritarashtra was blind by birth. His younger brother Pandu got the throne without meeting him.
हम सभी जानते हैं भागवत गीता का व्यापक प्रकाशन और पठन-पाठन होता रहा है परंतु प्रमुख रूप से यह संस्कृत महाकाव्य महाभारत की एक उपकथा के रूप में प्राप्त हुआ है मां भारत में वर्तमान कलयुग तक की घटनाओं का विवरण मिलता है इस युग के प्रारंभ में आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने अपने मित्र तथा भक्त अर्जुन को भागवत गीता का उपदेश दिया था उनकी वार्तालाप जो मानव इतिहास की सबसे महान दार्शनिक तथा धार्मिक वार्तालाप में से एक है उस महाभारत युद्ध के शुभारंभ होने से पूर्व हुई जो धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों तथा उनके चचेरे भाई पांड्या पांडू पुत्रों के मध्य होने वाला धात्री घातक संघर्ष था धृतराष्ट्र पांडु भाई भाई थे जिनका जन्म कुरु वंश में हुआ था और वे राजा भरत के वंशज थे जिनके नाम पर ही महाभारत नाम पड़ा क्योंकि बड़ा भाई धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था राज सिंहासन उसे ना मिलकर उसके छोटे भाई पांडू को मिला
Pandu died at a young age, after which 5 sons Yudhishthira, Bhima, Arjun, Nakula and Sadeva Dhritarashtra were placed in the care because he was made the king for some time, thus both Dhritarashtra and Pandu’s sons grew up in the same palace. Received training in military art by Guru Dronacharya and some Bhishma Pitamah was his mentor.
पांडु की मृत्यु अल्पायु में हो गई इसके बाद 5 पुत्र युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल तथा सदेव धृतराष्ट्र को देखरेख में रख दिए गए क्योंकि उसे कुछ काल के लिए राजा बना दिया गया था इस तरह धृतराष्ट्र तथा पांडु के पुत्र एक ही राजमहल में बढ़े हुए दोनों ही गुरु द्रोणाचार्य द्वारा सैनिक कला का प्रशिक्षण प्राप्त की और कुछ भीष्म पितामह उनके परामर्शदाता थे
Dhritarashtra’s son Duryodhana did not want the Pandavas and the weak-hearted Dhritarashtra wanted to make his son the successor of the kingdom in place of Pandu’s son, thus Duryodhana, with the consent of Dhritarashtra, conspired to kill the young sons of Pandu. Being under the protection of Vidura and his cousin Lord Krishna, he was able to keep his life safe even after many fatal attacks.
धृतराष्ट्र का पुत्र दुर्योधन पांडवों को नहीं चाहता था और दुर्बल हृदय वाले धृतराष्ट्र पांडू पुत्र के स्थान पर अपने पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे इस तरह धृतराष्ट्र की सहमति से दुर्योधन ने पांडू के युवा पुत्रों की हत्या करने का षड्यंत्र रचा पांचो पांडव अपने चाचा विदुर तथा अपने ममेरे भाई भगवान कृष्ण के संरक्षण में रहने के कारण अनेक प्राणघातक आक्रमण के बाद भी अपने प्राणों को सुरक्षित रख पाए
Background of Bhagavat Gita
Lord Krishna is not an ordinary person but the Supreme God who incarnated on this earth and till now was playing the role of a contemporary prince. He was the nephew of Kunti, the wife of Pandu and the mother of the Pandavas. Being a foster, he kept taking the side of the pious son of Pandu and kept protecting him.
भगवान कृष्ण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं अपितु साक्षात परम ईश्वर हैं जिन्होंने इस धरा धाम पर अवतार लिया और अब तक समकालीन राजकुमार की भूमिका निभा रहे थे वह पांडु की पत्नी कुंती तथा प्रथा पांडवों की माता के भतीजे थे इस तरह संबंध के रूप में तथा धर्म केशवसुत पालक होने के कारण वे धर्म परायण पांडू पुत्र का पक्ष लेते रहे और उनकी रक्षा करते रहे
The five Pandavas, who are extremely virtuous, had recognized Krishna as the Supreme Personality of Godhead, but Dhritarashtra’s friend sons could not recognize him, yet Krishna proposed to join the war according to the wishes of the opponents. There were but but whoever wanted to use his army could ban or so that one would not be complete of Krishna and the other would be West Bank would be present as a counselor and assistant Duryodhana, the skilful of politics, eagerly pounced on Krishna’s army. Whereas the Pandavas accepted Krishna equally eagerly, thus Krishna became Arjuna’s charioteer and accepted the fasting of that famous archer, thus we reach the point from where the Bhagavad Gita begins. is standing ready for war and Dhritarashtra is asking her secretary Sanjay whether what did he do, in this way all the background is ready, all that is needed is only a short comment about the playing and language which is the Bhagwat Geeta.
अत्यंत सच्चरित्र पांच पांडव ने कृष्ण को पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के रूप में पहचान लिया था किंतु धृतराष्ट्र के दोस्त पुत्र उन्हें नहीं पहचान पाए थे फिर भी कृष्ण विपक्षियों की इच्छा अनुसार ही युद्ध में सम्मिलित होने का प्रस्ताव रखा ईश्वर के रूप में भी युद्ध नहीं करना चाहते थे किंतु किंतु जो भी उनकी सेना का उपयोग करना चाहे कर सकता था प्रतिबंध या ताकि एक और कृष्ण के संपूर्ण ना होगी और दूसरी और वेस्ट बैंक होंगे एक परामर्शदाता तथा सहायक के रूप में उपस्थित रहेंगे राजनीति के कुशल दुर्योधन ने आतुरता से कृष्ण के सेना झपट ली जबकि पांडवों ने कृष्ण को उतना ही आतुरता से ग्रहण किया इस प्रकार कृष्ण अर्जुन के सारथी बने और उन्होंने उस सुप्रसिद्ध धनुर्धर का व्रत हांकना स्वीकार किया इस तरह हम उस बिंदु तक पहुंच जाते हैं जहां से भागवत गीता का शुभारंभ होता है दोनों ओर की सेना युद्ध के लिए तैयार खड़ी है और धृतराष्ट्र अपने सचिव संजय से पूछ रहा है कि क्या उन्होंने क्या किया इस तरह सारी पृष्ठभूमि तैयार है आवश्यकता है केवल वादन तथा भाषा के विषय में संक्षिप्त टिप्पणी की जो भागवत गीता है